सब रंग रचय, ना आपस में,
मन जौ इक्छा रस भीगगय,
निज मन हरि संग, होए कैसे।
जिस प्रकार एक से अधिक बर्तन आपस में आवाज करते है, और एक से अधिक रंग आपस में नहीं चढ़ते, उसी प्रकार जो मन इक्छाओ से ग्रस्त होगा वो हरी में कैसे रमेगा।
कृष्ण कृपा से
लेखक
अजित कुमार वर्मा